हर तरह के हर ख्याल को अब तक बस मन में पाला,
आज उजागर होने दो उनको खुलने दो ये ताला,
हँसी- खुशी दुःख-दर्द सब बस बाँटने से ही बंटते,
चले आओ पथिक यहाँ पर स्वागत करती नेटशाला।
Friday, 25 April 2008
क्या है नेटशाला ?
Posted by Ashish Khandelwal at 4:58 pm
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1 Comment:
सुस्वागतम। शीर्षक काफी अच्छा है।
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