Tuesday 6 May, 2008

कर्मचारी की अभिलाषा

इस रचना का श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी की अमर कृति
पुष्प की अभिलाषा से किसी तरह का कोई संबंध नहीं है।
अगर कोई संबंध पाया जाता है
तो इसे महज एक संयोग कहा जाएगा।

चाह यही की बॉस से

अपने पैसे बढ़वाऊं

चाह यही की गद्दे वाली

कुर्सी पर बैठूं, इठलाऊं

चाह यही कि सेक्रेट्री को

फोन करूं, अंदर बुलाऊं

चाह यही कि कॉलर में

मैं भी एक टाई लगाऊं

चाह यही कि किसी अर्जी पे

मैं भी इक चिड़िया बिठाऊं

चाह यही कि मिलने वालों को

घंटों बाहर बैठाऊं

चाह यही कि मेरे घुसते ही

सबको खड़ा मैं पाऊं

चाह यही कि कुछ अपने

चमचे मैं भी बनाऊं

मुझे दोस्त मत देना गाली

ऐसे पद पर गर जाऊं बैठ

रात दिन सब धोक लगाकर

रखना चाहेंगे मुझको सैट


- संजय गोस्वामी

0 Comments: