Saturday, 5 July 2008

शुक्रिया अमितजी, शुक्रिया!

अमिताभ बच्चन के हिन्दी प्रेम के क्या कहने? उनका ब्लॉग देखा तो पाया कि वे प्रशंसकों से हिन्दी में मुखातिब होना चाहते हैं। लेकिन तकनीकी रूप से कंप्यूटर पर हिन्दी लिखना नहीं जानने के कारण वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए उन्होंने डायरी के एक पन्ने पर हिन्दी प्रेमियों के नाम संदेश लिखकर उसे पोस्ट के साथ चस्पा किया है। उम्मीद करते हैं कि जल्द ही यह ब्लॉग हिन्दी में पढ़ने को मिले। वैसे अमितजी कई बार पिता स्व. हरिवंशराय बच्चन की हिन्दी में लिखी कविताएं पोस्ट के साथ दिखाते आए हैं। अमितजी, शुक्रिया.. कंप्यूटर पर हिन्दी भाषा का मान बढ़ाने के लिए।


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Saturday, 10 May 2008

हूं मैं जोरू का गुलाम मेरी मां

- विश्व मां दिवस की पूर्व संध्या पर रचित

(नीचे लिखीं लाइनें पढ़ने से पहले
फिल्म तारे जमीन पर के गीत
तुझे सब है पता मेरी मां.. को कंठस्थ करना जरूरी है)

मैं कभी बतलाता नहीं

पर बीवी से डरता हूं मैं मां

कर दिया तुझसे दूर मुझको

नापसंद उसको थी तू मां

हूं मैं जोरू का गुलाम मेरी मां

मुझे कर देना माफ मेरी मां

सोच कर दिल रोता है अब

लव मैरिज क्यूं कर ली मैंने मां

है उसके तो साथ उसकी मां

पर मुझसे है दूर मेरी मां

-संजय गोस्वामी



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Friday, 9 May 2008

दिल में नहीं है दर्द किसको?

(नीचे लिखीं लाइनें पढ़ने से पहले
फिल्म ओम शांति ओम के गीत
दर्द-ए-डिस्को की धुन को कंठस्थ करना जरूरी है)

जिंदगी अब है मुश्किल भरी,

हुई चीजें हैं महंगी बड़ी,

आटें की कीमतें भी बढ़ीं हैं

हैं दालें भी ऊंची चढ़ीं

हर घर हारा, इसका मारा, बोले सब

है कोई जो रोके इसको

दिल में नहीं है दर्द किसको

दर्द किसको, दर्द किसको

-संजय गोस्वामी

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Thursday, 8 May 2008

खो न जाए ये क्रिकेट कहीं पर


(नीचे लिखीं लाइनें पढ़ने से पहले
फिल्म तारे जमीन पर के टाइटल गीत
की धुन को कंठस्थ करना जरूरी है)

देखों इन्हें ये हैं आईपीएल की टीमें

बूढ़ों युवाओं का संगम ये टीमें

लाखों करोड़ों का सौदा ये टीमें

क्रिकेट के नाम पर धंधा हैं टीमें

खो न जाए ये क्रिकेट कहीं पर

भज्जी श्रीसंत को थप्पड़ मारे

दोनों एक ही टीम के तारे

और गांगुली भड़के अंपायर पे जा चढ़े

छोटे चियर गर्ल्स के कपड़े

प्रीति के जूनियरों से लफड़े

कोच-प्लेयर-अंपायर सब हैं फंसे पड़े

चली विवादों की लहर है

हुआ आधा अभी सफर है

मोटे पैसों का असर है..

खो न जाए ये क्रिकेट कहीं पर..

-संजय गोस्वामी

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Tuesday, 6 May 2008

कर्मचारी की अभिलाषा

इस रचना का श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी की अमर कृति
पुष्प की अभिलाषा से किसी तरह का कोई संबंध नहीं है।
अगर कोई संबंध पाया जाता है
तो इसे महज एक संयोग कहा जाएगा।

चाह यही की बॉस से

अपने पैसे बढ़वाऊं

चाह यही की गद्दे वाली

कुर्सी पर बैठूं, इठलाऊं

चाह यही कि सेक्रेट्री को

फोन करूं, अंदर बुलाऊं

चाह यही कि कॉलर में

मैं भी एक टाई लगाऊं

चाह यही कि किसी अर्जी पे

मैं भी इक चिड़िया बिठाऊं

चाह यही कि मिलने वालों को

घंटों बाहर बैठाऊं

चाह यही कि मेरे घुसते ही

सबको खड़ा मैं पाऊं

चाह यही कि कुछ अपने

चमचे मैं भी बनाऊं

मुझे दोस्त मत देना गाली

ऐसे पद पर गर जाऊं बैठ

रात दिन सब धोक लगाकर

रखना चाहेंगे मुझको सैट


- संजय गोस्वामी


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Monday, 5 May 2008

देखो देखो क्या ये पेट है

बुश महोदय जो कह गए सो कह गए।
चलो, बच्चों की जुबान से ही उन्हें कुछ समझा दें।

(नीचे लिखीं लाइनें पढ़ने से पहले
फिल्म तारे जमीन पर के गीत बम बम बोले
की धुन को कंठस्थ करना जरूरी है)

देखो देखो क्या ये पेट है

खाद्यान्नों का या घड़ा कोई

सारी दुनिया भूखी बैठी है

पेट भर रहे इंडियन सभी..

बुश जैसा बोले है लगे उससे ऐसा ही

सोचेगी यही दुनिया

खाना अपना लाओ, भारत से मिलाओ

दुनिया को बुलाओ

चलो, चलो, चलो कंपेयर कर लें

हम कम खाके भी मस्ती में डोले

ज्यादा खाके भी अमरीकी ये बोलें रे

- ओय हमपे ढोले


- संजय गोस्वामी
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Saturday, 3 May 2008

भारत एक विकासशील "पेट" है।

आज की ब्रेकिंग न्यूज



भारत एक विकासशील पेट है। समस्त भारतीय दिन-भर खाते-पीते रहते हैं और पूरे विश्व के लिए खाद्यान्न की समस्या पैदा करते रहते हैं। खासतौर से अमरीकियों की तो भारत के पेट पर कड़ी नजर है। खा भारतीय रहे हैं और पचाना अमरीका के लिए मुश्किल हो गया है। पहले विदेशमंत्री कोंडोलीजा राइस ने उल्टियां कीं और अब राष्ट्रपति बुश के पेट में मरोड़ चल रहे हैं। उनके बयानों से ऐसा लग रहा है कि अमेरीकी लोग तो इतने सात्विक हैं कि रोजाना एक वक्त का उपवास कर रहे हैं। नहीं खाकर भी अमरीका इतना ताकतवर कैसे हो रहा है? लगता है कि अमरीका अब देशों की बजाय पेटों पर हमला करने की तैयारी कर रहा है। यह भी हो सकता है कि थोड़े समय बाद बुश यह कहते दिखें कि भारतीय मध्यम वर्ग गाड़ियां खरीदने लगा है, इसी वजह से पेट्रोल की कीमतें बढ़ रही हैं। और थोड़े समय बाद ये भी कह सकते हैं कि भारतीय मध्यमवर्ग शादियां कर रहा है, इसी वजह से जनसंख्या बढ़ रही है। अब अगर अमरीका के घरों की बहुएं स्वादिष्ट खाना बनाना नहीं जानतीं तो इसमें भारतीयों की क्या गलती? ऊंऊंऊंऊंऊंऊंऊंऊंऊं... मेरा सारा खाना भारतीय खा गए...।
- संजय गोस्वामी


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Friday, 2 May 2008

मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं

वैसे तो यह बात कानों में पड़ते ही चौंकना लाजिमी है, लेकिन इसे सुनकर चौंकता कोई नहीं है। उसे पता होता है कि आसपास टीवी पर कोई बॉलीवुड फिल्म चल रही होगी। यह डायलॉग बॉलीवुड संवाद लेखकों के सबसे पसंदीदा डायलॉगों में से एक है। आज ऐसे ही बैठे-ठाले चर्चा चल पड़ी बॉलीवुड फिल्मों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले डायलॉग्स की। साथियों के साथ चर्चा और नेट पर थोड़ी माथा-पच्ची के बाद शीर्ष दस संवाद निकाल कर सामने आए हैं। आपसे भी इस संवादगंगा में संशोधन और योगदान की उम्मीद रखता हूं।

- पंडितजी, जल्दी कीजिए, लगन का मुहूर्त्त निकला जा रहा है.. कन्या को बुलाइए

- मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं

- मां, तू मुझे छोड़कर नहीं जा सकती

- भगवान के लिए मुझे छोड़ दो

- ये शादी नहीं हो सकती

- मैं तुम्हारा अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा

- दुनिया की कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती

- पुलिस मेरे पीछे लगी है

- भगवान, मैंने तुमसे आज तक कुछ नहीं मांगा

- आई लव यू

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Saturday, 26 April 2008

क्यों रोए श्रीसंत?

कल रात से यही सवाल मन में कुलाचे मार रहा है। आखिर आईपीएल मैच श्रीसंत रोए क्यों? घटना कुछ भी हो, भज्जी का गुस्सा हो या फिर श्रीसंत के इमोशंस, आज के लिए अखबारों को तो अच्छा लीड फोटो मिल ही गया। मैंने इस बारे में कई साथियों से चर्चा की। संभावित कारण कुछ इस तरह निकल कर आए-

1. पहली वजह यह हो सकती है कि रात 8 से 11 बजे वाले स्लॉट में महिलाओं को टीवी पर रोना-धोना देखने की आदत पड़ चुकी है। अब उन्हें पुरुष सास-बहू के सीरियल तो देखने देते नहीं, इसलिए आईपीएल वालों ने महिला वर्ग को जोड़ने के लिए यह नया पैंतरा निकाला हो।

2. एक कारण यह भी हो सकता है कि श्रीसंत और शिल्पा शेट्टी दोनों ही नाम एस से शुरू होते हैं। याद कीजिए आंसुओं ने सेलेब्रिटी बिग ब्रदर में शिल्पा को कहां तक पहुंचा दिया था। हो सकता है कि श्रीसंत उन्हीं के पदचिन्हों पर चल रहे हों।

3. एक संभावना यह भी है कि हो सकता है क्रिकेट में भी सीनियर-जूनियर के बीच रैगिंग की प्रथा हो। इस तरह की रैगिंग होती रहती हो और कोई भी मुंह नहीं खोलता हो। अब जब आईपीएल में काफी अच्छा पैसा मिल रहा है तो श्रीसंत ने करियर की परवाह किए बगैर अपना मुंह खोल दिया हो।

वजह कुछ भी हो, लेकिन इस घटना ने तेजी से अपना रूप बदलने वाले क्रिकेट को एक और रंग चढ़ाया है और हम एसे रंग को कभी नहीं देखना चाहते।


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Friday, 25 April 2008

क्या है नेटशाला ?

हर तरह के हर ख्याल को अब तक बस मन में पाला,
आज उजागर होने दो उनको खुलने दो ये ताला,
हँसी- खुशी दुःख-दर्द सब बस बाँटने से ही बंटते,
चले आओ पथिक यहाँ पर स्वागत करती नेटशाला।


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